हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा चम्बा संसदीय क्षेत्र से पूर्व में रहे सासंद डॉ राजन सुशांत उपचुनावों में हार गए और हारने के बाद डॉ राजन के बेटे धैर्य सुशांत ने इस हार की जिमेदारी भी बड़ी ईमानदारी से अपने ऊपर ली लेकिन अब धैर्य सुशांत ने फेसबुक प्लेटफॉर्म के माध्यम से सक्रिय राजनीति से अलविदा कहा है और एक पोस्ट फेसबुक पर डालकर आर्थिक स्थिति ठीक न होने का हबाला दिया है।
क्या लिखा है धैर्य ने-
प्यारे फ़तेहपुर वासियों,
पिछले एक लंबे समय से (मान्नीय प्रदेश उच्च न्यायालय की) वकालत छोड़कर आपके बीच हूँ। यूँ तो बचपन से ही इसी मिट्टी में पला-बड़ा लेकिन पिछले चार साल से लगातार डा राजन सुशान्त जी के मार्गदर्शन में फ़तेहपुर वासियों के लिए जो काम करने का अवसर मिला, यह मेरे जीवन के स्वर्णिम पल रहें हैं, जिन्हें कभी भूलाया नही जा सकता। इस दौरान मैंने फ़तेहपुर के लोगों के प्यार, अपनेपन और दोस्ती को बड़ी करीबी से महसूस किया है।मैं कहीं भी रहूँ, फ़तेहपुर इस कदर मेरे अंदर बस गया है, जिसे शब्दों में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता।
नियति कठोर होती है और मेरे जीवन के रथ का यह पहिया भी अब एक ऐसे पड़ाव पर है जहां एक तरफ़ कड़वी सच्चाई चट्टान की तरह मेरे सामने खड़ी है तो दूसरी तरफ़ हैं मेरे हसीन सपने और ख़्वाहिशें। लगातार चुनाव हारने एवं अपनी वकालत छोड़ने की वजह से परिवार की अर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। ऊपर से आदरणीय पिता जी(डा राजन सुशान्त जी) अपनी विधायक एवं सांसद पेंशन NPS कर्मचारियों की मांगो को लेकर पहले ही छोड़ चुके हैं। माता जी भी इसी राजनीति के चलते पहले ही नौकरी गवा चुकी हैं।इस उपचुनाव का खर्च हमें ज़मीन बेचकर करना पड़ा है और अभी भी लाखों रुपए का क़र्ज़ हमारे सर पर है। देहरी के घर पर क़र्ज़ लेकर उधार चुकाने की व्यवस्था की जा रही है।पिता जी पिछले आठ महीने से दिन-रात धरने पर डटे हुए हैं और अब विवाह के बाद मैं भी अकेला नहीं हूँ। परिवार और धर्म पत्नी की ज़िम्मेवारी मुझ पर है। ऐसे में मेरी स्थिति उस निर्धन ब्राह्मण की तरह है, जिसके पास विद्या तो है पर धन नहीं। स्वाभिमान और आत्मसम्मान से जीने स लिए मुझे पैसे कमाने होंगे।
इसीलिए बड़े भारी मन से मुझे सक्रिय राजनीति के साथ-साथ फ़तेहपुर छोड़ने का भी कठोर निर्णय लेना पड़ रहा है।क्यूँकि बाक़ी राजनेताओं की तरह ना तो हमारा कोई उद्योग या व्यापार है और ना ही कोई अन्य आय का साधन। इस समय मैं हर उस बेरोज़गार युवा की पीड़ा को समझ सकता हूँ, जो मजबूरी के चलते अपना क्षेत्र छोड़कर बड़े कम वेतन पर बाहरी राज्यों में नौकरी करने को मजबूर हैं।
मैं जनता हूँ बिना पैसे और किसी पार्टी के राजनीति करना कितना मुश्किल है और ये भी जनता हूँ की ना तो हमने कभी शराब या पैसे के बल पर चुनाव लड़ा है और ना ही कभी आगे लड़ेंगे।ऐसे में आज की व्यवहारिक राजनीति में मेरे जैसे व्यक्ति का कोई स्थान नहीं है।आज की राजनीति में जो योग्यता होनी चाहिए वही अयोग्यता है और वैसे भी मैं अपनी औक़ात से भली भाँति परिचित हूँ ।फ़तेहपुर की सियासत का यदि कोई सबसे छोटा प्यादा है, तो वो मै ही हूँ। मैं जानता हूँ भविष्य को लेकर कई लोगों की मुझ से बहुत सी अपेक्षाएँ भी होंगी और मैं ये भी जानता हूँ की अभी तो मैं राजनीति में ठीक से पैदा भी नहीं हुआ था, लेकिन सत्य तो यह है की राजनीति के अपने प्रसव काल में ही मुझे सक्रिय राजनीति से सन्यास लेना होगा। कालांतर में कई धैर्य सुशांत आएँगे और चले जाएँगे, पर रहेगा तो बस यह लोकतंत्र। यही है कठोर नियति, और मुझसे अधिक इसकी पीड़ा कौन समझ सकता है। मैंने पहले ही इस चुनाव में फ़तेहपुर के मतदाताओं को कहा था “की यह चुनाव हमारे जीने मरने का सवाल है” और डा राजन सुशांत जी ने भी खुले मन से कई बार मंचो से माफ़ी माँगी, खैर जनता का निर्णय स्पष्ट है और कांग्रेस के उम्मीदवार को लोगों ने पसंद किया है।
मैंने ना जाने इस पत्र को लिखने से पहले कितनी बार सोचा होगा और फिर ये पत्र लिखा और फिर फाड़ दिया, फिर लिखा और फिर फाड़ दिया। यह क्रम चलता रहा, लेकिन अब मैं विवश हूँ ।इस पत्र को लिखते हुए मुझे कितनी पीड़ा का अनुभव हो रहा है यह तो मैं ब्यां नहीं कर सकता लेकिन एक बात का आश्वासन आदरणीय डा राजन सुशांत जी को और अपने कार्यकर्ताओं को देना चाहता हूँ। मैं किसी भी MLA, मंत्री या अन्य पद से बढ़कर अपने पिता जी के मान सम्मन को रखता हूँ और किसी भी स्थिति में ऐसा कोई निर्णय नहीं लूँगा जो हमारे नेता या कार्यकर्ताओं के विरुद्ध हो। पिता जी के साथ बेटा होने के नाते और कार्यकर्ताओं के साथ उनका साथी होने के नाते आख़िरी साँस तक वफ़ादार रहूँगा।
इस पत्र के माध्यम से सक्रिय राजनीति को अलविदा कह रहा हूँ
धैर्य सुशान्त
“बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना।
ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है
पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्योंकि
एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले”
(हरिवंश राय बच्चन)
आपको बता दें कि इस पोस्ट में साफ तौर पर कहा है कि मैं पिता जी का सम्मान करता हूँ पर भारी मन से कहना पड़ सकता है कि हालात ऐसे बने हैं कि अब राजनीति से अलविदा ले रहा हूँ।
अब देखना ये होगा कि डॉ राजन सुशांत की राजनीति किस कदर प्रभावित होती है क्योंकि डॉ राजन की इस उम्र में उनका बेटा धैर्य पूरा साथ दे रहा था लेकिन अब धैर्य सुशांत ने राजनीति से सन्यास ले लिया है।