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जब जवाली की बच्ची मुस्कान को 11वी में छोड़ना पढ़ जाए स्कूल तो जिमेबारी कौन उठाए?

स्कुल की किताबें और यूनिफार्म के जूते ना खरीद पाने की वजह से आज मुस्कान को कक्षा 11वीं से स्कुल छोड़ना पड़ रहा है। आज मुस्कान बहुत मायूस है पर वो यह भी जानती है कि अपने बूढ़े दादा दादी के आगे  पढ़ाने के लिए बोल भी नही सकती क्योंकि वह उनकी मजबूरी और लाचारी को समझती है।

यह कहानी है तारु राम उम्र लगभग  70साल गांव भरनोली पंचयात जोल, विधानसभा जवाली हिमाचल प्रदेश की, तारु राम जी का एक बेटा था जो आज से 11 साल पहले गांव के साथ  लगती एक पहाड़ी से फिसल कर स्वर्ग सिधार गया तब मुस्कान कोई 3साल की रही होगी, बेटे की मौत के मात्र 3 महीने बाद ही मुस्कान की माँ किसी अन्य के साथ शादी करके चली गई  और नन्ही मुस्कान को बूढ़े दादा दादी के पास रोता बिलखता छोड़ गई, जवान बेटे की मौत के गम के चलते  तारु राम जी दमे की बीमारी का शिकार हो गए और सही समय पर इलाज ना मिलने की वजह से दमे ने अपना रोद्र रूप ले लिया, अब हालात यह है कि अगर तारु राम जी को बिस्तर पर करवट भी लेनी हो तो इन्हेंलर से बार बार पंप करना पड़ता है, पिछले  11सालों से मुस्कान की बूढी दादी मजदूरी करके अपने पती व पोती को पाल रही थी लेकिन वो इतना ही कमा पाती है जिससे मुश्किल से तीनो का पेट भर सके। हलांकि व्यवस्था ने उन्हें सस्ते राशन में डाला है लेकिन वो राशन भी कई बार खरीदा  नही जा सकता बाकी जो थोड़े से पैसे दादी मजदूरी से कमाती है वो कुछ तो दादा की दवाई पर खर्च हो जाते हैँ, और कुछ बचे तो उससे राशन लिया जाता है पर दिक्क़त यह है कि मजदूरी  भी तो रोज रोज नही मिलती कभी  काम मिलता है तो कभी  नही। हमने जब मुस्कान बिटिया के चेहरे को गौर से देखा तो अहसास हुआ कि वो तो अब सिर्फ नाम की मुस्कान रह गई है! अन्यथा उसके चेहरे से तो मुस्कान कब की चली गई है, खैर दोस्तो छोड़ो हमें क्या मुस्कान पढ़े या ना पढ़े? मुस्कान यह कहानी सुन कर जैसे ही हम गांव से बाहर पठानकोट मनाली हाइवे पर पहुंचे तो वंहा जिला प्रशासन द्वारा लगाए गए एक बहुत बड़े बोर्ड पर नजर पड़ी जिस पर अपने अपने मुकाम पर पहुंच चुकी कुछ बेटियों की तसवीरें थी व नीचे बड़े बड़े शब्दों में लिखा हुआ था कि हमारी बेटियां हमारा अभिमान। यह सब देख कर मेरे मन में एक सवाल जो बार बार आ  रहा है कि आखिर मुस्कान भी तो हमारी सब की बेटी है, अगर नही है तो फिर यह क्या है? थोड़ी  देर के लिए माना जूते और किताबें तो आ भी  जाएंगी पर स्कुल में सारा साल जो फीस लगती है वो बेचारी बूढी दादी कैसे जुटाएगी?

(यह पोस्ट समाजसेवी संजय शर्मा द्वारा फेसबुक पर शेयर की गई है)



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