हिमाचल प्रदेश के फतेहपुर विधानसभा की राजनीति बहुत पेचीदा रही है। फतेहपुर को पिछले कई सालों से दो धुरंधर ही चला रहे थे जिसमें से एक पूर्व में भाजपा के डॉ राजन सुशांत तथा दूसरे स्वर्गीय सुजान सिंह पठानिया रहे हैं। दोनों नेताओं की राजनीति का स्तर और कद काफी ऊंचा था दोनों ही नेताओं का नाम पूरे हिमाचल के बड़े-बड़े नेताओं में शामिल रहा हैम डॉ राजन सुशांत आज भी भाजपा से बागी होकर लगातार चुनाव लड़ रहे हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस से स्वर्गीय सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी सिंह पठानिया चुनावी मैदान में उतरे हैं हालांकि पिछले उपचुनावों में भवानी सिंह पठानिया ने जीत दर्ज की थी तथा विधानसभा पहुंचे थे। इस बार का जो विधानसभा चुनाव है फतेहपुर में इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि भाजपा से बागी हुए दो नेता चुनावी मैदान में हैं जिनमें से एक राजन सुशांत इस बार आम आदमी पार्टी से लड़ रहे हैं तो दूसरे 2017 चुनावों में रहे पूर्व प्रत्याशी कृपाल परमार आजाद रूप से मैदान में उतरे हैं तथा भाजपा की ओर से राकेश पठानिया इस बार प्रत्याशी हैं। जब नॉमिनेशन भरे जा रहे थे उसमें ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि इस बार की टक्कर दो पार्टियों के बीच रहेगी लेकिन जिस प्रकार से कृपाल परमार अब जनता के बीच जाकर पिछले 5 साल में बिना विधायक रहते लोगों के किए कामों का ब्यौर दे रहे हैं तथा बार-बार जनता के बीच यही सवाल उठा रहे हैं कि " आखिर मेरा क्या कसूर" ! यकीन मानिए यह चार शब्द जनता को भावुक कर रहे हैं और एक सहानुभूति की लहर कृपाल परमार के साथ चल रही है। फतेहपुर में आंकड़ों का फेरबदल हमेशा से रहा है फिर चाहे वह उपचुनाव क्यों ना हों क्योंकि जो कृपाल का वोटबैंक कृपाल परमार के चुनाव खड़े ना होने के कारण भाजपा को ना जाकर कांग्रेसी प्रत्याशी को जाना था अब कहीं ना कहीं कृपाल परमार को ही पड़ेगा और साथ ही अब सहानुभूति की लहर के चलते कृपाल परमार इसमें काफी हद तक स्ट्रांग दिख रहे हैं हालांकि यह तो नतीजे बताएंगे कि ऊंट किस करवट बैठेगा लेकिन पीपल के नीचे ट्याले पर बैठे ताऊ ने भी फिरकी लेते हुए कह ही दिया है "आबो पिछली बारी परमारे दा वोट भवानीये की जताई गया पर इस बारी मुश्किल है लगा दा काम"