मंत्रिमंडल या कमंडल? सुक्खूगिरी की चपेट में आया वीरभद्र खेमा, कांगड़ा हुआ इंटरनल पॉलिटिक्स का शिकार

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Rupansh Rana✍️✍️

सियासत की मार बहुत अजीब है जब लगती है तो आह तक नहीं निकलती है और वैसा ही हुआ पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह खेमे के लोगो के साथ! दरअसल पिछले कल मंत्रियों की शपथ हुई तथा सात मंत्रियों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया और इसी के साथ कुछ विधायकों को CPS भी बनाया गया लेकिन जैसे ही खबर सामने आई वैसे ही पक्ष विपक्ष समेत कई सियासी सितम के सताए सियासत दानों की आह निकली और इस कदर निकली कि सुखविंदर सिंह सुक्खू जोकि मौजूदा मुख्यमंत्री हैं उन्हें भी चपेट में ले लिया। खबर उड़ी कि हॉलीलॉज की माइलेज खत्म करने के लिए सुक्खू ने मंत्रिमंडल में अपने लोगों को जगह दी है हालाकिं बहुत से ऐसे नेता थे जो पूर्व में मंत्री रहे हैं लेकिन जगह नहीं मिली।

सबसे बड़ी चिंगारी तो कांगड़ा को सुलगाने में कामयाब रही कि आखिर कांगडियो की क्या गलती? जिन्होंने कांग्रेस को 10 सीटें जितबाकर सत्ता के शिखर तक पहुंचाया। सवाल उठा कि इतने बड़े कांगडा को सिर्फ एक ही मंत्री क्यों ? सवालों के जवाब में चुपके से सियासतदानों के मुह से शब्द निकले कि राजा खेमें को खत्म करने की कोशिश की गई है और सुक्खू गिरी चली है जो किसी की नहीं सुन रही।

खैर सियासत के फेरबदल का कोई भरोसा नहीं कब बदल जाए लेकिन सच्चाई है कि जो सियासत का फेर देखकर खुद को मोल्ड कर ले वही टिक सकता है।

सवाल उठा कि यदि शिमला जिला की एक विधानसभा से जीते हुए रोहित ठाकुर को यदि दूसरी बार जीतकर ही मंत्रिमंडल में जगह दे दी है तो वीरभद्र सरकार में मंत्री रहे सुधीर शर्मा को क्यों जगह नहीं दी गई ? क्यों शिमला को इतने मंत्री दे दिए लेकिन कांगड़ा को अनदेखा करके मात्र एक मंत्री दिया गया। ये सवाल ऐसे हैं जो हर किसी की जुवां पर हैं। वो कहाबत तो धराशाही होती दिखी जिसमें ये कहा है कि " सत्ता का रास्ता कांगड़ा से होकर जाता है " लेकिन फिर सत्ता के रास्ते की अनदेखी क्यों?

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