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प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला में फ़र्जी लगे सहायक प्रोफ़ेसर को हाई कोर्ट ने किया बाहर! जाली दस्तावेजों के आधार पर हुई थी नियुक्ति

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर एचपीयू के सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति रद्द कर दी है। न्यायाधीश सत्येन वैद्य ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय प्रशासन को आदेश दिए हैं कि मेरिट में अगले उम्मीदवार को नियुक्ति प्रदान की जाए। अदालत ने रजिया सुलतान की याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किए। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि प्रतिवादी ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का फर्जी प्रमाण पत्र जमा करवाया है। अदालत को बताया गया था कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने 30 दिसंबर 2019 को सहायक प्रोफेसर (लोक प्रशासन) के पद को भरने के लिए विज्ञापन जारी किया था। यह नियुक्ति विश्वविद्यालय के लीगल सेंटर (यूआईएलएस) में की जानी थी। याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के अलावा कई अन्य अभ्यर्थियों ने इसके लिए आवेदन किया था। 8 अप्रैल 2021 को इसके लिए साक्षात्कार लिए गए और प्रतिवादी का चयन किया गया। 9 अप्रैल 2021 को उसे सहायक प्रोफेसर (लोक प्रशासन) के पद पर नियुक्ति दी गई।

अदालत के समक्ष दलील दी गई कि प्रतिवादी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए हकदार नहीं था। 4 अक्तूबर 2017 को उसकी नियुक्ति सहकारिता विभाग में इंस्पेक्टर के रूप में हुई थी। हालांकि यह नियुक्ति अनुबंध आधार पर थी, लेकिन राज्य सरकार की ओर से 11 जून 2019 को जारी दिशा निर्देशों के तहत किसी भी सरकारी या गैस सरकारी संस्थान में नियमित या अनुबंध आधार पर नियुक्त व्यक्ति आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के प्रमाण पत्र के लिए पात्र नहीं है। प्रतिवादी की ओर से दलील दी गई कि याचिकाकर्ता भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के प्रमाण पत्र के लिए पात्र नहीं है। इस कारण वह प्रतिवादी की नियुक्ति को चुनौती देने का हक नहीं रखती है। अदालत ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन पर पाया कि प्रतिवादी की नियुक्ति राज्य सरकार की ओर से जारी दिशा निर्देशों के अनुरूप नहीं है। अदालत ने स्पष्ट किया कि प्रतिवादी की नियुक्ति रद्द करने का मतलब यह नहीं है कि याचिकाकर्ता का जारी किया गया आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग प्रमाण पत्र सही है।

आपको बता दें कि HPU शिमला में प्रोफेसर भर्ती का मामला सन्देह के घेरे में रहा है क्योंकि SFI छात्र संगठन लगातार इस मांग को उठाता आया है कि HPU शिमला में फर्जी तरीके से प्रोफ़ेसर भरे गए हैं तथा 10 हजार से ऊपर पन्नो की RTI भी छात्रों ने ली थी जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि 70 प्रतिशत प्रोफ़ेसर फर्जी भरे गए हैं।

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