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हिमाचल के दो सरकारी विश्वविद्यालयों की चक्की में पिसते प्रदेश के छात्र कॉलेज छोडने को मजबूर, बढ़ रहा शिक्षा छोड़ने का आंकड़ा

Rupansh Rana ✍️✍️

विश्वविद्यालयों की परिकल्पना आज के माहौल से बिल्कुल विपरीत थी तथा बहुत अलग थी।  जब विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई थी तो उनका उद्देश्य छात्र को उच्च शिक्षा देना, शोध आदि करवाना तथा एक ऐसा माहौल पैदा करना था जहां वैज्ञानिक, प्रगतिशील एवं चर्चा परिचर्चा का माहौल तैयार हो सके तथा साथ ही उन प्रश्नों के हल खोजना था जो अनसुलझे थे। साथ ही साथ देश का नेतृत्व करने वाला तबका तैयार करना भी विश्वविद्यालयों के विषय में शामिल था। 

लेकिन सवाल आज भी वहीं धरा का धरा है कि क्या ऐसा हो पाया है या नहीं ! 

हिमाचल प्रदेश में दो बड़े राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय हैं एक सबसे पुराना तथा बड़ा विश्वविद्यालय शिमला में स्थित है तो दूसरा अभी हाल ही में भाजपा सरकार द्वारा बिना योजना के मंडी में स्थापित किया गया जिसे लौहपुरुष सरदाल वल्लभ भाई पटेल के नाम से सरदार पटेल का नाम दिया गया तथा पिछली सरकार द्वारा स्वंय अपनी पीठ थपथपाने का काम किया गया।  

बात हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की करें तो 1970 में बने इस विश्वविद्यालय से संबद्ध कालेजों में छात्र अपनी पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर है क्योंकि जब हम ये मांग उठाते हैं कि खोखली शिक्षा व्यवस्था से हमारे महाविद्यालयों में छात्रों द्वारा शिक्षा छोड़ने का आंकड़ा बढ़ रहा है छात्र शिक्षा छोड़ रहा है तो हमें ये भी देखना होगा कि फीस वृद्धि कितना बड़ा कारण है।

 यहां शिक्षा एक तरफ छात्रों के अनुकूल बनानी चाहिए थी छात्र हितेषी होनी चाहिए थी वहीं आकाओं ने उसका बेड़ागर्क कर दिया तथा लगातार छात्र विरोधी फरमान लाकर छात्रों को शिक्षा से दूर किया गया।

फिर चाहे वह रूसा सिस्टम हो, फीस वृद्धि हो, CBCS सिस्टम हो , ERP जैसी बड़ी बीमारी या NEP हो।  बार बार बदलते फरमानों ने छात्र को गुमराह तथा भटकाने का काम किया है क्योंकि 2014 के बाद पास मार्किंग मानदंड हो या सब्जेक्ट चुनने का सवाल हो पिछ्ले 10 सालों में 10 बार पैटर्न बदला है। 2013 से 2015 तक बैच के छात्रों को पास होने के लिए अलग मानदंड थे उसके बाद 2016 बैच के लिए अलग विषय चुनाव तथा पास मार्क्स मानदंड आये फिर 2017 बैच के छात्रों के लिए कोई अन्य फॉर्मूला लाए लेकिन उसके बाद थक हारकर एनुअल सिस्टम ले आए और साथ ही साथ फीस में वृद्धि करने लगे और छात्रों को लूटने लगे। घटिया पेपर चेक प्रणाली ले आये जिसमें ऑनलाइन माध्यम से स्कैन करके शीट मूल्यांकित होने लगी जिसमें बहुत खामियां थी इस सब के बाबजूद अब रिअपीयर भरने की फ़ीस ने मानो छात्रों की कमर तोड़ दी। ऐसा आभास होने लगा है कि छात्र पढ़ नहीं रहा बल्कि डिग्री खरीद रहा है क्योंकि ERP के माध्यम से जो रिजल्ट बनता है उसमें बहुत सी खामियां हैं उन खामियों को ठीक करने के लिए विश्वविद्यालय छात्रों से फीस बसूलता है। फिलवक्त आजकल छात्र रिअपीयर भर रहा है और जिस छात्र के 2 चांस रिअपीयर के हो गए हैं उनको तीसरा मौका 5 हजार रुपये के साथ पेपर भरने के लिए मिल रहा है। हालाकिं भारत में किसी बड़े से बड़े पेपर को भरने के लिए भी इतनी फीस नहीं ली जाती है लेकिन विश्वविद्यालय ले रहा है।

Large scale पर हमारे ग्रामीण कॉलेजों में गरीब छात्र पढ़ता है जो मौजूदा समय में रिअपीयर भर रहा है लेकिन 5 हजार फीस बहुत ज्यादा है जिस बजह से बहुत से छात्रों का ड्राप आउट बढेगा क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र का छात्र रिअपीयर की इतनी ज्यादा फीस नहीं दे पा रहा है, ग्रामीण एरिया में 1000 रुपये निकालना बहुत मुश्किल होता है तो ये फिर भी 5 हजार रुपये हैं। बहुत सा छात्र विश्वविद्यालयों की खोखली व्यवस्थाओं की बजह से फेल हुआ है क्योंकि ऑनलाइन चेकिंग , ठेके पर चैकिंग या कॉड सकैनिंग आदि इसका कारण रहें हैं। एक ताजा उदाहरण हमनें हाल ही में सरदार पटेल विश्वविद्यालय का देखा जिसमें कालेजों के प्रिंसिपल के गेजेट में कुछ और रिजल्ट सरदार पटेल विश्वविद्यालय द्वारा भेजा गया था लेकिन जब छात्र ने अपना रिजल्ट डाउनलोड किया तो उसमें फेल पाए गए हालाकिं बाद में वहां के कंट्रोलर ने उसे ठीक करने की अर्जी प्रति कुलपति को दी। 

कभी पेपर समय पर न होना तो कभी पेपर चैकिंग समय पर न होना आदि छात्रों के शिक्षा छोड़ने का बड़ा कारण है क्योंकि छात्र समझ नहीं पाता है कि अगली कक्षा में बैठें या पिछली कक्षा में ही बैठा जाए जिस बजह से छात्र विश्वविद्यालयों की चक्की में पिसता जा रहा है। 

मैं विश्वविद्यालय में पढ़ता हूँ लेकिन दिन में लगभग 15 से 20 ऐसे मजबूर छात्रों के फोन कॉल्स आते हैं जो कोई कांगड़ा से हैं कोई चम्बा में पढ़ रहा है। किसी का रिजल्ट नहीं निकल पाता तो किसी का रिजल्ट पूरा नहीं आया होता है , कई लोगों के नम्बर नहीं चढ़े होते तो कइयों के दो स्टार तीन स्टार लगे होते हैं ,बहुतों के कॉरेक्शन होने को होती है चुकीं  अब वह छात्र चम्बा के दूर दराज क्षेत्र से है इसलिये वह शिमला नहीं आ पाता है और न ही उसके आर्थिक हालात ये इजाजत देते हैं कि वह 2 हजार लगभग किराया खर्च करे और दो दिन यहां रहने का खर्च करे उसके बाद भी क्या पता काम उसका दो दिनों में होगा या नहीं इसलिए छात्र शिक्षा छोड़ना उचित समझ रहा है क्योंकि फीस का मुद्दा कोई छोटा मुद्दा नहीं है बहुत गंभीर मुद्दा है क्योंकि इससे प्रदेश के लाखों छात्र पीस रहे हैं और हजारों छात्र शिक्षा छोड़ रहे हैं। पिछले 10 सालों का रिकॉर्ड अगर देखेंगे तो बहुत से छात्र शिक्षा पूरी नहीं कर पाए तथा इन तमाम कारणों से कॉलेज छोड़कर चले गए।

यहां एक तरफ विश्वविद्यालयों , कॉलेजों का काम छात्रों को  वेहतर शिक्षा देना था वहीं आज प्रदेश विश्वविद्यालय छात्रों को शिक्षा से दूर करने का कारण बन रहा है।

विश्वविद्यालय में छात्र संगठन लगातार विश्वविद्यालय  प्रशासन के सामने चुनोती के रुप में खड़े हैं परंतु छात्रों की मांग को दबाने के लिए कभी केस रजिस्टर किये जाते हैं तो कभी विश्वविद्यालय से बाहर कर दिया जाता है। यदि आंकड़ें उठाएंगे तो हम पाते हैं कि जब से विश्वविद्यालय बना है तब से लेकर आजतक जो जो छात्र आवाज़ उठा रहे थे उनपर बहुत से मुक़दमे आज भी रजिस्टर हैं। कई छात्रों को कई कई दिन जेलों में रखा गया। 

इस बात में कोई दोराय नहीं कि छात्रों की आवाज को दबाने का काम SCA चुनाब बन्द करके किया गया जो चुने हुए प्रतिनिधि कहीं आवाज उठाते थे आज छात्रों का कोई प्रतिनिधि नहीं रहा जो उनकी आवाज को उठा सके इसलिए ये उस समाज की जिमेदारी बनती है कि छात्रों की आवाज को उठाया जाए क्योंकि जब भारत चाँद पर पहुंच सकता है और G 20 जैसा सम्मेलन हाल ही में करवाया है और उस भारत में छात्र शिक्षा छोड़े तो सवाल समाज पर भी उठता है।

(लेखक हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला के छात्र हैं) 

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