सुप्रीम कोर्ट से भूमिहीनों को राहत, सीपीएम नेता डॉ ओंकार की याचिका पर मिली राहत। जानिए पूरा मामला

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हिमाचल प्रदेश में भूमिहीनों के लिए सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत की खबर आई है। राज्य में पांच बीघा भूमि तक का कब्जा रखने वाले करीब 1.65 लाख परिवारों की उम्मीद अब जिंदा है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के 'धारा 163-A' और भूमि नियमितीकरण नीति को असंवैधानिक ठहराने और रद्द करने के हाई कोर्ट के फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी है।
 क्या है पूरा मामला 
2002 में हिमाचल में यह नीति लागू की गई थी कि गरीब भूमिहीन परिवार यदि पांच बीघा तक सरकारी जमीन पर काबिज़ हैं तो वो अपना कब्जा नियमित कर सकते हैं। प्रदेश सरकार से 1.65 लाख आवेदन आये। लेकिन इस नीति की संवैधानिकता को अदालत में याचिका डालकर चुनौती दी गई, जिसमें जनहित के साथ-साथ जमीन बचाओ आंदोलनों की सक्रिय भूमिका रही।
हाईकोर्ट ने अगस्त 2025 में 163-A को संविधान के खिलाफ मानते हुए नीति खत्म कर दी थी। कोर्ट ने आदेश दिया था कि 28 फरवरी 2026 तक सारे कब्जे हटाए जाएं, जिससे हजारों भूमिहीनों की आजीविका पर संकट मंडरा गया था।
 सीपीआईएम नेता आगे आए
इस महत्वपूर्ण विवाद में सीपीएम (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी) के नेता – खासकर ठियोग से विधायक तथा पूर्व महापौर ने सर्वोच्च अदालत से दखल की मांग की। जिसके उपरांत हिमाचल सीपीएम के पूर्व सचिव ओंकार शाद की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इन नेताओं ने इस फैसले को गरीब, खेतिहर और भूमिहीनों के साथ नाइंसाफी बताया। सीपीएम की हिमाचल इकाई ने सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा कि सरकार की विफल नीतियों का ख़ामियाज़ा गरीबों को भुगतना पड़ रहा है, और भूमिहीनों को न्याय मिलना चाहिए।  
 राजनैतिक और सामाजिक असर
सीपीएम ने अदालत के आदेश के बाद बड़ी जनसभा कर फैसले को गरीब विरोधी ठहराया और पूरे प्रदेश में 'भूमिहीनों के अधिकार बचाओ' अभियान शुरू किया। सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम राहत के बाद इस जनांदोलन को बल मिला और भूमिहीन तबके में नयी उम्मीद जगी है। किसान सभा व वामपंथी संगठनों ने साफ कहा कि वह जरूरत पड़ी तो पूरे राज्य में आंदोलन की राह पर उतरेंगे।
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