हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट शिमला ने 16 जुलाई 2025 को सुनाए गए अपने निर्णय में पूर्व सैनिक बलजीत धत्तवालिया की याचिका को स्वीकार करते हुए राज्य शिक्षा विभाग द्वारा उनकी नियुक्ति को रोके जाने के आदेश को खारिज कर दिया है। बलजीत धत्तवालिया, जिन्होंने भारतीय सेना से सेवानिवृत्ति के बाद डिफेंस सिक्योरिटी कोर (DSC) में कॉन्ट्रैक्ट आधार पर सेवाएं दी थीं, की नियुक्ति इतिहास विषय के प्राध्यापक (स्कूल न्यू) के तौर पर रद्द कर दी गई थी। इस केस में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विश्व भूषण तथा राज ठाकुर ने पैरवी की।
याचिकाकर्ता का पक्ष
बलजीत धत्तवालिया ने याचिका में कहा कि वे एक्स-सर्विसमैन से संबंधित कोटे में पूरी तरह से पात्र थे और उनका नाम पूर्व सैनिक रोजगार सेल, हमीरपुर द्वारा नामित किया गया था। बावजूद इसके, शिक्षा विभाग ने नियुक्ति पत्र रोक दिया और उनके डीएससी में सेवा की प्रकृति पर स्पष्टीकरण मांगा था।
कोर्ट का विश्लेषण और निर्देश
हाई कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा डीएससी में दी गई सेवा "संविदा" (contractual) थी न कि नियमित (regular)। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि डीएससी की संविदा सेवा के कारण उनकी पूर्व सैनिक श्रेणी की पात्रता पर कोई रोक नहीं लगाई जा सकती। कोर्ट ने यह तर्क भी खारिज कर दिया कि किसी पूर्व सैनिक द्वारा केंद्रीय सेवा में नियमित नौकरी ले लेने पर उनकी पूर्व सैनिक श्रेणी की पात्रता खत्म हो जाती है—क्योंकि बलजीत धत्तवालिया ने डीएससी में कॉन्ट्रैक्ट सेवा ही ली थी, न कि नियमित सरकारी नौकरी।
नियुक्ति आदेश और सेवा शर्तें
कोर्ट के आदेश के बाद शिक्षा विभाग ने बलजीत धत्तवालिया को Government Senior Secondary School, Nagnoli (जिला ऊना) में इतिहास विषय के "Lecturer (School-New)" पद पर प्रशिक्षु के तौर पर 25,800 रुपये प्रति माह के निश्चित वेतन पर नियुक्ति का आदेश जारी किया। यह नियुक्ति दो साल की प्रशिक्षु अवधि के लिए है जिस दौरान शर्तें निर्धारित हैं—for example, Leave, अनुशासनात्मक कार्रवाई, अवकाश, और नियमितीकरण के लिए आवश्यकताओं का स्पष्ट उल्लेख किया गया है।
मुख्य बिंदु
- उच्च न्यायालय ने बलजीत धत्तवालिया की नियुक्ति रोकने के आदेश को अवैध माना और शिक्षा विभाग को जल्द से जल्द नियुक्ति पत्र जारी करने का आदेश दिया।
- डीएससी में कॉन्ट्रैक्ट सेवा वाली स्थिति में पूर्व सैनिक की सरकारी नौकरी हेतु पात्रता बनी रहती है।
निष्कर्ष
यह फैसला न केवल पूर्व सैनिकों के हित के लिए एक मिसाल है, बल्कि कॉन्ट्रैक्ट और नियमित सेवाओं के बीच के अंतर की भी स्पष्ट व्याख्या प्रस्तुत करता है। उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से बलजीत धत्तवालिया को न्याय मिला और राज्य सरकार के विभागों को पूर्व सैनिकों के अधिकारों के प्रति जवाबदेह बनाया गया है।
आपको बता दें कि इस केस की जजमेंट लैंडमार्क जजमेंट बनी है तथा भविष्य में DSC संबधित ऐसे मामलों में सन्दर्भित होगी।