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"मुझे निकाल कर पछता रहे होंगे, यही सोच कर मैं वापिस आ गया हूँ" कृपाल की पोस्ट से फतेहपुर में हाहाकार


यह वापसी की हुंकार प्रदेश भाजपा के उपाध्य़क्ष, पूर्व सांसद एवं 2017 के विधानसभा चुनावों में फतेहपुर से भाजपा प्रत्याशी कृपाल परमार ने भरी है। कृपाल परमार ने सोशल मीडिया पर उक्त पंक्तियां लिखी एक पोस्ट शेयर की है। इस पोस्ट पर कुछ ही समय में सैंकड़ों लाइक्स और दर्जनों कमेंट्स आए हैं। अधिकतर लोग इसे परमार की जिंदादिली करार दे रहे हैं और उनका स्वागत कर रहे हैं। पोस्ट में सबसे ऊपरी पंक्ति में कृपाल परमार ने “फतेहपुर की जनता का सेवक” शब्द भी लिखा है। परमार के इन्हीं शब्दों को उनके चाहने वाले परमार की सच्चाई करार दे रहे हैं और कह रहे हैं कि परमार फतेहपुर की जनता के सच्चे सेवक रहे हैं। 2017 में विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद भी कृपाल परमार जनता के बीच रहे और जनसमस्याओं के समाधान के लिए काम करते नजर आए।

हाल ही में हुए उपचुनाव में ऐन वक्त पर उनकी टिकट काट दी गई और उन्होंने उसपर भी सार्वजनिक तौर पर कोई टिप्पणी नहीं की। उन्होंने इसे हाईकमान का फैसला बताकर स्वीकार कर लिया। हालांकि स्वास्थ्य कारणों से वह चुनाव प्रचार में नहीं उतरे लेकिन उन्होंने कहीं भी खुले मंच से पार्टी के फैसले का विरोध नहीं किया। शायद उनकी यही बात उन्हें जनता की नजरों में हाल ही में भाजपा प्रत्याशी रहे बलदेव ठाकुर से अलग बना गई। क्योंकि 2017 में बलदेव ठाकुर ने टिकट कटने पर भाजपा से बगावत कर दी थी और माना यह गया कि उनकी वजह से पार्टी को हार का सामना भी करना पड़ा। हाल ही में हुए उपचुनावों में भले ही कृपाल परमार ने बगावत नहीं की लेकिन पार्टी फिर भी हार गई। क्योंकि कई लोग इस बात से ही खफा थे कि आखिर भाजपा फतेहपुर में बार-बार प्रत्याशी क्यों बदल रही है। वहीं परमार का चार साल तक फील्ड में रहकर जनता से जुड़े रहना और ऐन वक्त पर उनकी टिकट काटना भी आम लोगों के साथ-साथ कृपाल परमार के समर्थकों को खटक गया। जबकि जो बलदेव ठाकुर पार्टी से बागी होकर आजाद लड़े और फिर जनता के बीच नहीं दिखे, उनको टिकट देना भी फतेहपुर के भाजपा कार्यकर्ताओं और परमार समर्थकों की समझ से परे रहा। ऐसे में नतीजा यह हुआ कि मंत्रियों-विधायकों के साथ-साथ दर्जनों पदाधिकारियों की फौज भी फतेहपुर को फतेह नहीं कर पाई। यहां तक कि स्वयं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी फतेहपुर में भाजपा के लिए प्रचार किया लेकिन जनता ने उनकी भी नहीं सुनी। वहीं इस हार के बाद यह तो तय हो गया कि जिस बलदेव ठाकुर पार्टी जिताऊ प्रत्याशी समझ रही थी वह कहीं न कहीं कमजोर दिखे।

दूसरी तरफ इस उपचुनाव में खड़े अन्य प्रत्याशी भी कृपाल परमार को जीत का सशक्त दावेदार मान रहे थे। उनका कहना था कि परमार ने हारने के बावजूद भी जनता के बीच रहकर काम किया है और जनसमस्याओं को दूर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विरोधियों की मानें तो भाजपा ने गलत प्रत्याशी का चयन करके खुद ही अपनी जीती हुई सीट हार ली। यदि बलदेव ठाकुर की बजाए कृपाल परमार को पार्टी टिकट देती तो नतीजे निश्चित तौर पर भाजपा के पक्ष में होते। खैर उपचुनावों में भाजपा की तीनों विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर हार हुई है। भाजपा भी हार के कारणों पर मंथन की तैयारी में है। फतेहपुर में हार का ठीकरा किसके सिर फूटेगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन कृपाल परमार ने एक बार फिर से जिंदादिली का परिचय देते हुए जनता की सेवा की हुंकार भरी है। इससे एक बात तो तय है कि परमार भले ही फतेहपुर के विधायक नहीं बन पाए लेकिन फतेहपुर की जनता के प्रति उनके सेवाभाव में आज भी कोई कमी नहीं आई है। 2022 के विधानसभा चुनाव अब ज्यादा दूर नहीं हैं और कुछ लोग इसे परमार की चुनावी तैयारी भी कह रहे हैं। लेकिन एक बात तो तय है कि परमार की जनता के बीच सक्रियता आगामी विधानसभा चुनावों में उनके विरोधियों की चिंताएं जरूर बढ़ाएगी।

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