13वीं विधानसभा में बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीतकर आए प्रकाश राणा व होशियार सिंह की विधानसभा सदस्यता खतरे में पड़ सकती है नियम ये हैैं कि निर्दलीय चुनाव जीतकर आने वाला कोई भी विधायक किसी दल में शामिल नहीं हो सकता है। हां, विधानसभा में जीतकर आए दलों के साथ सहयोगी हो सकता है।
भाजपा का सुविचारित निर्णय
अब विधानसभा चुनाव के लिए छह माह से कम का समय रह गया है। लोकतांत्रिक प्रणाली में प्रविधान है कि दल-बदल करने वाले विधायक को तय अवधि के भीतर विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देना होता है। इसके पीछे कारण यह है कि क्षेत्र विशेष की जनता ने उस व्यक्ति को किसी पार्टी के बजाए निर्दलीय मत प्रकट करके और विश्वास करके विजयी बनाया था, जिसने किसी दल विशेष में जाकर धोखा किया है।
त्यागपत्र देना पड़ा तो सुविधाएं बंद
यदि नियमों का सम्मान करते हुए दोनों निर्दलीय विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दिया तो तुरंत वेतन अदायगी बंद होगी और अन्य सुविधाओं पर भी विराम लगेगा।
हिमाचल प्रदेश विधानसभा सचिवालय ने 13वीं विधानसभा के तहत चुनकर आए सदस्यों के संबंध में केंद्रीय चुनाव आयोग की सूची के आधार पर सदस्यों को शपथ दिलवाई थी। यदि केंद्रीय चुनाव आयोग की तरफ से इस संबंध में तुंरत कार्रवाई की जाती है तो इनकी सदस्यता पर संकट हो सकता है। 12वीं विधानसभा में पवन काजल, बलबीर सिंह वर्मा, राजेंद्र राणा व मनोहर धीमान निर्दलीय जीतकर आए थे और उस समय कांग्रेस सरकार के सहयोगी विधायक रहे थे।
विपक्ष शिकायत करेगा तो ही होगी कार्रवाई
नियमों के मुताबिक कोई भी विधायक चुनाव जीतने के बाद दूसरे दल में नहीं जा सकता। संविधान की दसवीं अनुसूची के अनुसार शिकायत मिलने पर कार्रवाई संभव है। विधानसभा का सचिवालय या अध्यक्ष अपने स्तर पर कार्रवाई के लिए संज्ञान नहीं ले सकते हैं। इसलिए विपक्ष की ओर से शिकायत आने के बाद ही इस मामले में आगामी कार्रवाई होती है। कार्रवाई विधानसभा अध्यक्ष की ओर से की जाती है। पूर्व सरकार के समय में भी ऐसा हुआ था। उस दौरान भी विपक्ष की शिकायत पर ही तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष के पास काफी समय तक सुनवाई चलती रही। हालांकि कार्रवाई के नाम पर ज्यादा कुछ नहीं हो पाया था। अब क्योंकि चुनाव में छह माह से भी कम समय रह गया है, इसलिए जमा-घटाव के बाद ही यह निर्णय लिया है