लंबे समय से अवैध खनन का शिकार हो रहा चक्की खड्ड में बना रेल पुल आखिरकार शनिवार को बाढ़ में बह ही गया। पुल के पिलरों के आसपास प्रशासनिक लापरवाही के चलते बेधड़क अवैध खनन का खेल जारी था। शनिवार को पुल के छह पिलर पूरी तरह बह गए, जबकि अन्य छह भी खतरे की जद में आ गए हैं। खनन के कारण पुल की नींव कमजोर हो गई थी। वहीं, नौ दशकों में इस नैरोगेज रेलमार्ग के विकास व विस्तार को लेकर रेल मंत्रालय ने भी कोई जहमत नहीं उठाई। अब पुल बह जाने से हजारों नौकरीपेशा लोगों, स्कूली बच्चों और बाहरी राज्यों से आने वाले श्रद्धालुओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। इस रेलमार्ग के बहाल होने के लिए अब लंबा इंतजार करना पड़ेगा। प्रदेश की प्रमुख धरोहरों में से एक पठानकोट-जोगिंद्रनगर रेलमार्ग को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने का सपना पिछले कई सालों से नेता दिखा रहे हैं।
लेकिन कांगड़ा घाटी की जीवनरेखा समझी जाने वाली इस रेल को अभी तक की सरकारें न तो आगे खींच पाईं और न ही इसकी गति व पटरी का आकार बदल सकी हैं। ब्रिटिश कालीन रेलमार्ग को नैरोगेज से ब्रॉडगेज करने का मुद्दा कई बार केंद्र सरकार के समक्ष उठाया जाता रहा है। लेकिन किसी ने कोई सुध नहीं ली।डिविजनल मंडल फिरोजपुर रेलवे प्रबंधक डॉ. सीमा शर्मा ने बताया कि पुल के बाढ़ में बहने के कारणों की जांच की जाएगी। यह पुल बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका था। इंजीनियरों से बात करके बरसात खत्म होते ही दोबारा इसके निर्माण का कार्य आरंभ किया जाएगा। उसके बाद बंद पड़ीं ट्रेनों को बहाल किया जाएगा।
1929 में बना था पुल
वर्ष 1929 में ब्रिटिश शासनकाल में जोगिंद्रनगर में स्थापित किए गए शानन विद्युत प्रोजेक्ट के लिए कांगड़ा वैली रेलवे लाइन को बिछाया गया था। इसे बाद में जनता के लिए खोल दिया गया। 164 किलोमीटर लंबे इस रेलमार्ग में 33 छोटे-बड़े स्टेशन आते हैं। यह रेल 939 पुलों, दो सुरंगों व 484 मोड़ों से होकर गुजरती है।
विश्व धरोहर की सूची में शामिल होने की कवायद को भी लगा धक्का
1926 में पुल को बनाने का कार्य शुरू हुआ था। वहीं, 1929 में पुल तैयार हो गया था। इसके बाद यह पुल लगातार सेवाएं देता आया है। अब इसे विश्व धरोहर सूची में शामिल करने की कवायद को भी धक्का लगा है।