हिमाचल प्रदेश में 1600 से ज्यादा आउटसोर्स कर्मचारियों को नौकरी से निकाला जा चुका है। सैकड़ों कर्मचारी 31 मार्च को नौकरी से हटा दिए जाएंगे, क्योंकि इनकी सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों का सरकार के साथ एग्रीमेंट खत्म होने वाला है। इससे स्टेट के 25 हजार से ज्यादा आउटसोर्स कर्मचारियों में हड़कंप मच गया है।
प्रदेश के विभिन्न विभागों में बड़ी संख्या में ऐसे आउटसोर्स कर्मचारी हैं, जिन्हें दो से तीन महीने से मानदेय नहीं दिया गया। पहले ही नाममात्र मानदेय पर काम कर रहे इन कर्मचारियों को परिवार के पालन-पोषण, बच्चों की पढ़ाई और बूढ़े मां-बाप की दवाइयां इत्यादि का खर्च पूरा करने में कठिनाई हो रही है, अब इन्हें मानदेय भी नहीं दिया जा रहा।
गलती पूर्व की सरकारों की है, जिन्होंने आउटसोर्स पॉलिसी को शुरू किया और विभिन्न विभागों में सेवाएं दे रहे 30 से 35 हजार आउटसोर्स कर्मचारियों का शोषण किया। सूबे में आउटसोर्स कर्मी 15-18 सालों से विभिन्न विभागों में सेवाएं दे रहे हैं, फिर भी इनका भविष्य सुरक्षित नहीं है। सरकार जब चाहे इन्हें बाहर कर देती है और जरूरत पड़ने पर अंदर किया जाता है। दोष पूर्व की सरकारों पर मड़ दिया जाता है।
एक्सटेंशन के इंतजार में आउटसोर्स कर्मी
विभिन्न विभागों में कई आउटसोर्स कर्मी ऐसे भी हैं जिनका एग्रीमेंट खत्म हो गया है और सरकार से एक्सटेंशन मिलने के इंतजार में हैं। स्वास्थ्य विभाग ने कोरोना का हवाला देते हुए लगभग 1700 कर्मचारियों की सेवाओं को 31 मार्च तक का एक्सटेंशन दिया है। यानी चार दिन बाद इनकी नौकरी जाना भी लगभग तय है। इसी तरह अन्य विभागों में सैकड़ों आउटसोर्स कर्मियों की नौकरी पर तलवार लटक गई है।