हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में त्रिलोकपुर के जंगल से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां खैर के करीब 5,000 हरे-भरे पेड़ों को अवैध रूप से काट दिया गया है। यह गोरखधंधा पिछले 8 महीनों से चल रहा था, जिसमें न केवल हिमाचल के माफिया, बल्कि हरियाणा के ठेकेदारों का भी हाथ बताया जा रहा है। प्रसिद्ध बालासुंदरी मंदिर से कुछ ही दूरी पर हुए इस कटान ने वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आइए, इस पूरे मामले की सच्चाई को करीब से जानते हैं।त्रिलोकपुर के जंगल में खैर माफिया ने ऐसा कहर बरपाया कि पेड़ों को जड़ों समेत उखाड़ दिया गया। जानकारी के मुताबिक, जमीन से 3 फीट तक खोदाई कर करीब 5,000 खैर के पेड़ काटे गए हैं। मौके पर सैकड़ों गड्ढे और पेड़ों के अवशेष इसकी गवाही दे रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि यह कटान पिछले 8 महीनों से जारी था और करीब 35 हजार बीघा जंगल की जमीन को प्रभावित किया गया। हैरानी की बात यह है कि इतने बड़े पैमाने पर चल रहे इस अवैध धंधे की भनक वन विभाग को नहीं लगी।सूत्रों के अनुसार, खैर माफिया ने निजी खेतों या मलकीयत भूमि से खैर काटने की अनुमति ली थी, लेकिन इसकी आड़ में जंगल के हजारों पेड़ों को काटकर ठिकाने लगा दिया गया। नियमों के मुताबिक, जंगल झाड़ी किस्म की भूमि से खैर के पेड़ काटना पूरी तरह प्रतिबंधित है, चाहे वह निजी जमीन हो या सरकारी। फिर भी, त्रिलोकपुर में मलकीयत जंगल झाड़ी भूमि से बड़े पैमाने पर कटान हुआ। यह सवाल उठता है कि अनुमति देने से पहले वन विभाग ने इसकी जांच क्यों नहीं की? स्थानीय लोगों का कहना है कि काटे गए पेड़ों को रातोंरात फैक्टरियों या अन्य जगहों पर बेचा जा रहा था।खैर की लकड़ी बाजार में बेहद कीमती है। एक अच्छे खैर के पेड़ की कीमत 1 लाख रुपये तक हो सकती है। इस हिसाब से 5,000 पेड़ों का मूल्य करोड़ों रुपये में पहुंचता है। सूत्रों का दावा है कि इस अवैध कटान से माफिया ने करोड़ों की कमाई की। हरियाणा के ठेकेदारों के शामिल होने की बात भी सामने आई है, जो इस लकड़ी को काठा फैक्टरियों तक पहुंचाने में जुटे थे। यह पूरा खेल संगठित तरीके से चलाया जा रहा था, जिसमें स्थानीय स्तर पर भी कुछ लोगों की मिलीभगत की आशंका जताई जा रही है।नाहन के डीएफओ अवनी भूषण राय ने कहा कि मलकीयत जंगल झाड़ी भूमि से खैर काटने की जानकारी उनके पास नहीं है। उन्होंने बताया कि कई आवेदनकर्ताओं ने निजी भूमि से खैर काटने की अनुमति मांगी थी, लेकिन नियमों के तहत जंगल झाड़ी भूमि से कटान पर पूरी तरह रोक है। फिर भी, त्रिलोकपुर में इतने बड़े पैमाने पर कटान कैसे हो गया, यह जांच का विषय है। वन विभाग की इस लापरवाही ने स्थानीय लोगों में नाराजगी पैदा की है, जो इसे पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा मान रहे हैं।यह घटना हिमाचल के जंगलों पर बढ़ते खतरे की ओर इशारा करती है। खैर माफिया की यह करतूत न केवल वन संपदा को नष्ट कर रही है, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी को भी प्रभावित कर सकती है। अब देखना यह है कि वन विभाग और प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाते हैं। लोगों की नजरें अब सरकार पर टिकी हैं कि इस गोरखधंधे के जिम्मेदारों को सजा मिलेगी या नहीं।