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हिमाचल में तबाही क्यों आई? 2025 की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा की ज़मीनी रिपोर्ट

हिमाचल प्रदेश का सिराज इलाका, जो मंडी जिले का एक शांत और हरा-भरा कोना माना जाता था, इस बार कुदरत के सबसे खतरनाक कहर का गवाह बना। 1 जुलाई 2025 की रात को आई भारी बारिश और बादल फटने की घटना ने सिराज के कई गांवों को तबाह कर दिया।

थुनाग, करसोग, कटौला, और आसपास के क्षेत्र — जहाँ लोग खेती-किसानी और पहाजी जीवन की सादगी के साथ जीते आए थे — अब मलबे, पानी और दुखों के बीच खड़े हैं।

क्या है बादल फटना, और सिराज में ऐसा क्यों हुआ?

बादल फटना कोई आम बारिश नहीं होती। ये तब होता है जब हवा में मौजूद भारी नमी अचानक एक जगह इकट्ठी होकर बहुत कम समय में जमीन पर गिरती है।

सिराज में ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि:

  • जून के आखिरी हफ्तों में गर्मी और उमस बहुत ज़्यादा थी।
  • 1 जुलाई को सिराज क्षेत्र में सामान्य से 1900% ज़्यादा बारिश हुई — जो पूरे महीने में होनी थी, वो कुछ घंटों में गिर गई।
  • पहाड़ियों से टकरा कर जो मानसूनी हवाएं आईं, उन्होंने अचानक गरजते हुए बादल बना दिए जो फट पड़े।
  • खासतौर पर थुनाग और उसके आसपास के गांव सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए। कई जगहों पर तो ऐसा लगा जैसे पहाड़ ही पानी उगल रहा हो।

कितना नुकसान हुआ?

अब तक की सरकारी और लोकल रिपोर्ट्स के मुताबिक़:

  • 17 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है सिर्फ सिराज क्षेत्र में।
  • 30 से अधिक लोग लापता हैं — जिनमें महिलाएं, बुज़ुर्ग और बच्चे शामिल हैं।
  • सैकड़ों घर मलबे में दब चुके हैं।
  •  सड़कें पूरी तरह बंद पड़ी हैं — खासकर ग्रामीण संपर्क मार्ग।

गांवों का संपर्क कट गया — जैसे शिल्ह, बढाल, जांजैहली, शिकारी देवी के आस-पास के क्षेत्र पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए।

सिराज में ही क्यों?

सिराज विधानसभा पहाड़ी और गहरी घाटियों से भरा इलाका है। यहाँ की ढलानों पर बसे गांव, नदी-नालों के पास बने घर और जंगलों के कटने से ज़मीन कमज़ोर हो गई है। इन वजहों से:

  • पानी को बहने का रास्ता नहीं मिला
  • सड़कों और नालियों की खराब हालत ने और परेशानी बढ़ाई
  • निर्माण कार्यों ने पहाड़ों की मजबूती को खोखला कर दिया

सरकार और प्रशासन की स्थिति

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने सिराज के लिए अलग से राहत फंड जारी करने की बात कही है, और SDRF व NDRF की टीमें थुनाग और करसोग में राहत कार्य में जुटी हैं।

लेकिन ज़मीनी हालात कुछ और ही कहानी कहते हैं। कई गांवों में 2 दिन तक कोई भी मदद नहीं पहुंच सकी। लोग खुद ट्रैक्टर, फावड़े और हाथों से मलबा हटाकर अपनों की तलाश में लगे रहे।

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