जब अमेरिका ने भारत पर आयात शुल्क यानी टैरिफ 50% तक बढ़ा दिया, इसका सीधा असर भारत से अमेरिका भेजे जाने वाले लाखों-करोड़ों के सामानों पर पड़ा। इससे पहले अमेरिका सिर्फ 25% टैरिफ लेता था, लेकिन अब भारतीय सामान वहाँ भेजना दोगुना महंगा हो गया है, खासकर टेक्सटाइल, गारमेंट, रत्न-आभूषण, मेडिसिन, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सेक्टर्स में।
भारत के लिए अमेरिका सबसे बड़ा खरीददार है। भारत हर साल 80-90 अरब डॉलर के प्रोडक्ट्स अमेरिकी बाजार को बेचता है। लेकिन अब टैरिफ महंगा होने से भारत का माल वहाँ महंगा बिकेगा और अमेरिकी कंपनियां भारत के बदले वियतनाम, बांग्लादेश या चीन से सस्ती चीजें खरीद सकती हैं।
जब किसी देश के सामान पर आयात शुल्क बढ़ता है, तो तीन बड़ी दिक्कतें आती हैं:
1. भारत का सामान कम बिकेगा – अमेरिका के लोग और कंपनियां खर्च बढ़ने से भारत का बना माल कम खरीदेंगे। इससे भारत का निर्यात घट जायेगा, जिस पर करोड़ों की नौकरियां और अरबों डॉलर की आमदनी टिकी है।
2. जिन फेक्ट्रियों, कंपनियों, खेतों से ये सामान बनता है वहाँ पर प्रोडक्शन कम हो जाएगा। जैसा कपड़ा, गारमेंट, गहने, दवाइयाँ, इलेक्ट्रॉनिक्स—इनमें काम करने वाले लाखों लोगों की नौकरियों पर सीधा खतरा आ जायेगा। उत्पादन कम हुआ तो वेतन कम मिलेगा, कहीं-कहीं नौकरी भी जा सकती है।
3. भारत की अर्थव्यवस्था पर असर—भारत के कुल निर्यात में अमेरिका का बड़ा हिस्सा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, टैरिफ इतना ज्यादा हो जाने से भारत की GDP ग्रोथ 0.6% तक कम हो सकती है। सरकार को टैक्स कम मिलेगा और देश का विदेशी मुद्रा भंडार (डॉलर की संपत्ति) भी घट सकता है।
इस टैरिफ का असर सिर्फ फेक्ट्रियों या बड़ी कंपनियों पर नहीं, बल्कि गांव-शहर तक फैले छोटे उद्योग और आम मजदूरों तक पहुंचेगा। जैसे कुटीर उद्योग, घरेलू मशीनरी, कृषि फसलें—इन पर बने प्रोडक्ट भी महंगे हो गए तो ऑर्डर कम आएंगे और कारोबारी घाटा बढ़ेगा।
अगर भारत सरकार इस नुकसान की भरपाई दूसरे देश में बाजार खोज कर या अमेरिका से बातचीत कर से नहीं कर पाई तो निर्यात पर निर्भर पूरा इकोसिस्टम धीमा पड़ सकता है। और जितना लंबा ऐसा विवाद चलेगा, भारत-अमेरिका के आर्थिक और रणनीतिक रिश्ते में भी चुनौतियां बढ़ेंगी।
संक्षेप में, टैरिफ बढ़ाना सिर्फ दो देशों का व्यापारिक फ़ैसला नहीं, बल्कि लाखों छोटे-बड़े भारतीयों की आमदनी, रोज़गार और भविष्य को सीधे असर करता है।