Rupansh Rana
शिमला में हाल ही में एक अद्भुत और गंभीर मामला सामने आया है,जहाँ पुलिस सहायता कक्ष पर टिप्पणी करने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार और एक ऑनलाइन न्यूज़ पेज "संवाद भारत" के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। उनका अपराध? एक फेसबुक पोस्ट के ज़रिए प्रशासन की कथित निष्क्रियता पर सवाल उठाना।
पूरा मामला क्या है?
30 जुलाई को शिमला सदर थाना में दर्ज एफआईआर के अनुसार, वरिष्ठ पत्रकार डॉ. संजीव शर्मा और "संवाद भारत" नामक फेसबुक पेज ने एक ऐसी पोस्ट साझा की जिसमें यह दर्शाया गया कि शिमला मॉल रोड पर एक बुज़ुर्ग व्यक्ति गिर पड़े, मदद की गुहार के बावजूद पुलिस सहायता समय पर मौके पर नहीं पहुंची, जिसके कारण व्यक्ति की हालत गंभीर हो गई।
पुलिस का आरोप है कि —
- ये पोस्ट “भ्रामक”, “मनगढंत” और “जनता में डर और गुस्सा फैलाने वाली” थीं।
- इससे “पुलिस समुदाय की छवि खराब हुई” और “लोक शांति भंग होने की आशंका” उत्पन्न हुई। FIR में BNS की धारा 196(1)(b) और 353(1)(b) के तहत केस दर्ज किया गया है, जो लोक सेवक के खिलाफ प्रचार और सरकारी ड्यूटी में बाधा डालने जैसी धाराओं से संबंधित हैं।पत्रकारिता का मूल धर्म है – सच दिखाना, सिस्टम से सवाल पूछना, और जनता की आवाज़ बनना। यदि सोशल मीडिया पर आलोचना करने पर पत्रकारों पर आपराधिक मामला दर्ज हो, तो यह न केवल पत्रकारिता पर हमला है, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा को भी चुनौती है।
संविधान की आत्मा के खिलाफ
भारत के संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अगर एक घटना पर सवाल उठाना ही "लोकव्यवस्था को खतरा" माना जाये, तो यह राज्य शक्ति के अनुचित प्रयोग की मिसाल बन जाती है। जब-जब सत्ता या प्रशासनिय कमियों पर मीडिया चुप होती है, लोकतंत्र कमजोर होता है। उसी तरह, जब मीडिया सवाल करता है और राज्य उसे रोकने की कोशिश करता है, तब असल में लोकतंत्र की परीक्षा होती है।
डर का माहौल और आत्म-सेंसरशिप
हर ऐसा कदम जिसमे पत्रकारों को डराने के प्रयास हों — चाहे FIR हो या नोटिस से मीडिया की स्वतंत्रता नहीं, आत्म-सेंसरशिप को बढ़ावा मिलता है। इससे जनहित में होने वाली रिपोर्टिंग अपंग हो सकती है।एफआईआर दर्ज करना खुद में कोई गुनाह नहीं, लेकिन जिस ‘मंशा’ से किया गया वह लोकतांत्रिक मूल्यों से मेल नहीं खाता। यह संदेश समाज में जा रहा है कि अगर आप तंत्र से सवाल करेंगे, तो आपको सजा मिलेगी।यह घटना पत्रकार बिरादरी, नागरिक अधिकारों और लोकतांत्रिक संस्थानों को गंभीर रूप से सोचने के लिए मजबूर करती है। क्या आज का भारत वह देश है, जहाँ “सवाल पूछना” अब जुर्म माना जाता है?
यह ब्लॉग पत्रकारिता की स्वतंत्रता, सोशल मीडिया की भूमिका, और राज्य बनाम नागरिक बहस पर गहरी सोच प्रस्तुत करता है।