मामला किस बात से शुरू हुआ?
हिमाचल प्रदेश सरकार ने शिमला के पास श्री तारा देवी हिल को "ग्रीन एरिया" घोषित कर दिया ताकि वहां किसी भी तरह का नया निर्माण—खासकर होटल और बड़े व्यावसायिक प्रोजेक्ट—रुक सके। सरकार का मकसद था प्राकृतिक सुंदरता और पर्यावरण संरक्षण, क्योंकि पिछले कुछ सालों में वहां पेड़ों की कटाई, अव्यवस्थित निर्माण और भारी पर्यटन से काफी नुकसान हो चुका था।
लेकिन एक होटल कंपनी (Pristine Hotels & Resorts Pvt. Ltd.) ने इसका विरोध किया और इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। कंपनी ने कहा, इससे कारोबार और विकास पर अंकुश लग रहा है। हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी क्योंकि कंपनी खुद जमीन की मालिकाना योग्यता (locus standi) नहीं रखती थी, इसलिए कोर्ट ने उनकी दलीलें नहीं मानी।
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो वहां भी कंपनी को राहत नहीं मिली। उल्टा, कोर्ट ने दिखाई कड़ी नाराजगी और पर्यावरण को हो रहे नुकसान पर बड़ी चिंता जताई:
- कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि हिमाचल प्रदेश में अनियंत्रित निर्माण, बड़ी सड़कें, रोपवे, डैम, जंगलों की अंधाधुंध कटाई और बेतरतीब पर्यटन ने पहाड़ों की नींव हिलाकर रख दी है।
- न्यायमूर्तियों ने कहा, "भगवान ना करें ऐसा वक्त आए कि हिमाचल नक्शे से ही मिट जाए।" कोर्ट ने जोर देकर कहा कि हर साल लैंडस्लाइड, बाढ़, सड़कें टूटना—यह सब इंसानी लापरवाही का नतीजा है, इसे रोका जा सकता है।
- उन्होंने सख्त लहजे में सरकार को चेतायत दी कि राजस्व कमाने की होड़ में हिमाचल की कुदरती सुंदरता और पर्यावरण को ताक पर रखना भविष्य के लिए तबाही ला सकता है।
- कोर्ट ने इस पूरे मामले को अब जनहित याचिका (PIL) में बदल दिया है और सरकार से पूछा है कि पारिस्थितिकीय संकट रोकने के लिए तुरंत क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
आखिर सुप्रीम कोर्ट ने ये बात क्यों कही?
दरअसल, कोर्ट यह संकेत देना चाह रही थी कि हिमाचल की प्राकृतिक संपदा—जो न केवल वहां के निवासियों बल्कि देशभर के पर्यावरण संतुलन के लिए जरूरी है—आज भारी संकट में है। uncontrolled construction, जंगलों की कटाई, और मकसद सिर्फ पैसा कमाना बना लेना—इन सब बातों से हिमाचल का वजूद खतरे में पड़ता जा रहा है।
कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले का दायरा सिर्फ एक निजी याचिका के बजाय एक बड़े जनहित के सवाल में बदल दिया है, ताकि हिमाचल की प्राकृतिक सुंदरता, पारिस्थितिकीय संतुलन और भविष्य दोनों को सुरक्षित रखा जा सके। यही वजह है कि अदालत ने इतनी बड़ी चेतावनी दी—जैसे सभी के लिए एक “wake-up call” हो।