रामपुर बुशहर स्थित पारिवारिक न्यायालय, किन्नौर ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि अलग रह रही पत्नी का भरण-पोषण करना पति का कानूनी और नैतिक दायित्व है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि पत्नी ससुराल छोड़ भी देती है, तो यह कारण पति को अपने दायित्व से मुक्त नहीं कर सकता।
मामला शिमला जिले के एक दंपती से जुड़ा है, जिनका तलाक संबंधी मामला विचाराधीन है। सुनवाई के दौरान पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत भरण-पोषण और मुकदमेबाजी खर्च की मांग की। उसने बताया कि उसके पास न कोई रोजगार है और न ही आय का स्रोत। वह अपनी वृद्ध मां के साथ रह रही है और आर्थिक रूप से कमजोर है। वहीं, पति के पास सेना की पेंशन और निजी नौकरी से पर्याप्त आय है और संपत्ति भी मौजूद है।
पत्नी ने अदालत से गुज़ारिश की थी कि उसे अंतरिम भरण-पोषण के तौर पर पांच हजार रुपये मासिक और मुकदमेबाजी के लिए 35,000 रुपये दिए जाएं। इसके विपरीत, पति ने दलील दी कि पत्नी अपनी इच्छा से अलग रह रही है। उसने पहले ही पत्नी के नाम एफडी और संपत्ति ख़रीद रखी है। साथ ही, पत्नी स्वयं भी बुनाई, सिलाई, ब्यूटीशियन के काम और होटल चलाने से अच्छी आय अर्जित करती है।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने माना कि पति पेंशन प्राप्तकर्ता है और आर्थिक रूप से सक्षम है। अदालत ने अपने आदेश में यह तय किया कि पति पत्नी को मासिक तीन हजार रुपये भरण-पोषण के रूप में और 25 हजार रुपये एकमुश्त मुकदमेबाजी खर्च के रूप में अदा करेगा। न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि पति के भरण-पोषण का दायित्व हिंदू कानून का अभिन्न हिस्सा है और यह कोई आधुनिक या अस्थायी सिद्धांत नहीं है।