हिमाचल प्रदेश में पिछले दिनों चुनावी शोर जोरों पर था। 12 नवंबर को चुनाव संपन्न हुए हैं इसी के साथ अब 8 दिसंबर का इंतजार उन तमाम उम्मीदवारों को है जो चुनावी मैदान में उतरे थे और खासकर इससे भी ज्यादा इंतजार जनता को है जिन्होंने वोट दिया है। फिलवक्त गुजरात में चुनावी शोर है और गुजरात की वोटिंग के बाद 8 दिसंबर को ही दोनों राज्यों के चुनाव परिणाम निकलने हैं। पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश में भाजपा की टिकट आवंटन के समय बहुत हेरफेर देखने को मिला था। कईयों के टिकट काटे गए, कईयों को टिकट दिए गए जो पहले जीते थे उनके टिकट काटे गए जो पहले हारे थे उनको टिकट दिए भी गए, बहुत उलटफेर हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में हुआ।
खबरें यह भी आई कि जिन जिन लोगों की टिकट काटकर कहीं अन्य विधानसभाओं में उन्हें टिकट दी गई है उनकी राजनीति को खत्म करने की साजिश भाजपा आलाकमान में चली हो ? बहुत सी खबरें यह भी आई कि हिमाचल प्रदेश की विधान सभा नूरपुर से राकेश पठानिया जो कि पिछले 5 साल मंत्री भी रहे उन्हें टिकट काटकर फतेहपुर में दी गई ये कहीं न कहीं पठानिया को बलि का बकरा बनाया गया हो। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा शुरू हुई कि पठानिया की टिकट नूरपुर से काटकर फतेहपुर में इसलिए भी दी गई है क्योंकि फतेहपुर में भाजपा की जीत नहीं हो सकती है और राकेश पठानिया की राजनीति को खत्म करने के चक्कर में उन्हें फतेहपुर में बलि का बकरा बनाया गया है राजनीतिक माहिरों ने यह तक कह दिया कि भाजपा आलाकमान की पठानिया के ऊपर यह समझ हो सकती है कि अगर जीते तो भाजपा को फायदा है और नहीं जीते तब भी भाजपा को ही फायदा है इसलिए फतेहपुर टिकट थमा दी हो।
लेकीन अब इलेक्शन हो गए हैं और नतीजे आने वाले हैं परन्तु एक सच्चाई है कि यदि राकेश पठानिया फतेहपुर से जीत गए तो कई आलाकमान नेताओं को पोलिटिकल करंट लगने के आसार हैं और कई डैमेज भी होंगे। बहुत से राजनीतिक जानकार ये तक कह रहे हैं कि यदि राकेश पठानिया फतेहपुर जैसी टफ सीट को जीत लेते हैं तो कई नेताओं के सर पर चढ़ कर तांडव करेंगे क्योंकि जिस भट्ठी में राकेश पठानिया को झोंका गया है उस भट्ठी में यदि पठानिया जले नहीं तो तप कर निकलेंगे और यदि तप कर निकले तो याद रहे फिर राकेश पठानिया कइयों के गले की फांस बनेगें।