भारत की अर्थव्यवस्था काफी हद तक कच्चे तेल पर निर्भर है, और ये तेल मुख्य रूप से खाड़ी देशों से आता है। जब भी उस क्षेत्र में युद्ध या संकट होता है, तो सबसे पहला असर तेल की कीमतों पर पड़ता है। इस बार भी कुछ वैसा ही हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल महंगा हो गया है, जिससे भारत में पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ने की पूरी संभावना है। इसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ेगा, क्योंकि जब पेट्रोल महंगा होता है तो सामान लाने-लेजाने की लागत बढ़ती है और महंगाई भी बढ़ती है।
भारत के लाखों लोग खाड़ी देशों में काम करते हैं। ईरान, सऊदी अरब, यूएई और कतर जैसे देशों में बसे भारतीय परिवार अब चिंता में हैं। अगर युद्ध फैलता है तो उन लोगों की जान और रोज़गार दोनों खतरे में पड़ सकते हैं। भारत सरकार को ऐसे में बड़ी संख्या में लोगों को वापस लाने के लिए विशेष उपाय करने पड़ सकते हैं, जैसा पहले यूक्रेन युद्ध में हुआ था।
भारत की विदेश नीति के लिए भी यह एक कठिन समय है। भारत के ईरान से पारंपरिक दोस्ताना रिश्ते हैं, वहीं अमेरिका और इज़रायल से भी हमारे मजबूत रणनीतिक संबंध हैं। ऐसे में भारत के लिए यह तय करना कठिन हो जाता है कि वह किस पक्ष का समर्थन करे और किससे दूरी बनाए। किसी एक का साथ देने से दूसरे से रिश्ते बिगड़ सकते हैं, इसलिए भारत को संतुलन बनाकर आगे बढ़ना होगा।
इसके अलावा ईरान में भारत द्वारा बनाया जा रहा चाबहार बंदरगाह भी युद्ध की आंच से प्रभावित हो सकता है। यह बंदरगाह भारत की अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया तक पहुंच का अहम रास्ता है। अगर युद्ध लंबा खिंचता है तो इस प्रोजेक्ट पर भी रोक लग सकती है।
भारत और ईरान के बीच व्यापार भी प्रभावित हो सकता है। सूखे मेवे, दवाइयाँ, पेट्रोकेमिकल्स और अन्य जरूरी चीजें जो भारत ईरान और खाड़ी देशों से मंगाता है, उनकी आपूर्ति में रुकावट आ सकती है। इससे आम जनता को कई जरूरी चीजें महंगे दाम पर खरीदनी पड़ सकती हैं।
इस समय भारत के सामने आर्थिक, कूटनीतिक और मानवीय — तीनों तरह की चुनौतियाँ खड़ी हैं। सरकार को सतर्क रहकर फैसले लेने होंगे ताकि देश की अर्थव्यवस्था, विदेशों में बसे भारतीयों की सुरक्षा और वैश्विक मंच पर भारत की छवि सुरक्षित रहे।