दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में Sushant Rohilla नामक कानून छात्र की आत्महत्या मामले में शिक्षा संस्थानों में छात्र हितों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इस मामले में छात्र की 75% अटेंडेंस नियमों के तहत परीक्षा देने से वंचित किए जाने और मानसिक दबाव को आत्महत्या की वजह बताया गया था। कोर्ट ने सभी शिक्षा संस्थानों को निर्देश दिए हैं कि वे अपनी ग्रिवेंस रिड्रेसल कमेटियां (GRC) मजबूत करें और छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए काउंसलिंग एवं सपोर्ट सिस्टम उपलब्ध कराएं। कोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को भी यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि अटेंडेंस नियम लचीले हों और इंटर्नशिप, असाइनमेंट्स, केस स्टडीज आदि को अटेंडेंस के तहत गिना जाए। साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि छात्रों को कड़े नियमों के कारण परीक्षा से वंचित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उनसे अपेक्षित परिणामों के अनुसार ग्रेड घटाए जा सकते हैं। कोर्ट ने बायोमेट्रिक अटेंडेंस और CCTV के प्रयोग पर भी चिंता जताई और कहा कि इन्हें लागू करते समय छात्रों की निजता का ध्यान रखा जाए। यह आदेश शिक्षा प्रणाली में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसका उद्देश्य छात्रों को दबावमुक्त शिक्षा वातावरण उपलब्ध कराना और उनकी समग्र मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करना है। उच्च शिक्षा संस्थान अब कोर्ट के निर्देशों के अनुसार अपने अटेंडेंस और ग्रिवेंस तंत्रों को बेहतर बना रहे हैं। यह मामला न केवल व्यक्तिगत त्रासदी बल्कि शिक्षा क्षेत्र में सुधार और छात्रों के अधिकारों के संरक्षण का प्रतीक बन गया है।
दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा आदेश: L.L.B कोर्स के अटेंडेंस नियमों पर बदलाव के लिए दिशा-निर्देश
शुक्रवार, नवंबर 07, 2025
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