हिमाचल प्रदेश कांग्रेस सरकार के तीन साल पूरे होने पर मंडी के पड्डल मैदान में हुई “जन संकल्प रैली” अब नए विवाद में घिरती नजर आ रही है। आरोप है कि इस सरकारी–राजनीतिक कार्यक्रम के लिए स्वयं सहायता समूहों (SHG) से जुड़ी 9 हजार 197 महिलाओं को प्रशासनिक दबाव में अलग–अलग जिलों से बसों में भरकर लाया गया, जबकि यह रैली सरकार की “उपलब्धियों का उत्सव” दिखाने के लिए आयोजित की गई थी।
बिलासपुर जिले के एक कर्मचारी ने, नाम गोपनीय रखने की शर्त पर, यह दावा किया कि अधिकारियों को ऊपर से “टारगेट” दिए गए थे और SHG से जुड़ी महिलाओं की विस्तृत सूची तैयार कर उन्हें मंडी लाने के निर्देश दिए गए। कर्मचारी के अनुसार, कई महिलाओं ने भीतर–ही–भीतर नाराज़गी ज़ाहिर की, लेकिन सरकारी तंत्र और अधिकारियों के दबाव के चलते खुलकर विरोध की हिम्मत नहीं जुटा सकीं। सवाल यह उठ रहा है कि जो महिलाएं अपने समूहों के माध्यम से आत्मनिर्भरता और आजीविका के लिए काम कर रही हैं, क्या उन्हें किसी राजनीतिक कार्यक्रम की भीड़ दिखाने के लिए महज़ “संख्या” में बदल दिया गया?
राज्य सरकार ने इस रैली को “जन संवाद” और “जन समर्थन” की मिसाल के रूप में प्रचारित किया, लेकिन अगर SHG नेटवर्क का इस्तेमाल मजबूरन भीड़ जुटाने के लिए किया गया, तो यह न केवल महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है, बल्कि ग्रामीण आजीविका मिशन की पूरी आत्मा पर भी चोट है। प्रशासन पर यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या योजनाओं से जुड़ी लाभार्थी महिलाओं को राजनीतिक मंचों पर ले जाने के लिए सरकारी संसाधन, बसें और स्टाफ लगाए गए, और यदि हाँ, तो उसकी जवाबदेही किसकी तय होगी।
इस पूरे प्रकरण पर विपक्ष पहले से हमलावर है। विपक्षी दलों के नेता सवाल उठा रहे हैं कि जब प्रदेश आपदा, बेरोज़गारी और महंगाई से जूझ रहा है, तब अफसरशाही और पंचायत तंत्र को “भीड़ प्रबंधन” का औज़ार क्यों बनाया गया। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी है कि यदि महिलाओं को उनकी मर्जी के बिना रैली में ले जाया गया, तो यह न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि प्रशासनिक दुरुपयोग का मामला भी बन सकता है।
फिलहाल, कांग्रेस की ओर से इन आरोपों पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। न ही सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि SHG महिलाओं की भागीदारी स्वैच्छिक थी या सरकारी आदेशों के तहत “सुनिश्चित” की गई। ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि प्रशासन और सरकार दोनों पारदर्शिता दिखाएं — यह बताएँ कि कितनी महिलाओं को किस प्रक्रिया से बुलाया गया, क्या उनकी सहमति ली गई, और भविष्य में SHG जैसे सशक्तिकरण के औज़ारों को राजनीतिक भीड़ जुटाने का माध्यम बनने से कैसे रोका जाएगा। जब तक इन सवालों के स्पष्ट जवाब नहीं मिलते, मंडी की यह रैली उपलब्धियों से ज़्यादा, महिलाओं को “जबरन भीड़” में बदलने के आरोपों को लेकर ही चर्चा में रहेगी।
